आयुर्वेद मे पित्त की थैली की पथरी निकालने का अचूक उपाय बताया गया है। पित्ताशय यानी कि गॉलब्लैडर शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है । जो भोजन को पचाने के कार्य में सहयोग करता है बहुत से लोग इस अंग के बारे में ज्यादा सूचना नहीं रखते हैं। इसके अंदर से पित्त नाम का एक द्रव्य निकलता है जो कि भोजन को पचाने के कार्य में सहायक होता है। पित (Bile) के संतुलित श्राव से भोजन पचने की प्रक्रिया सामान्य होती है। जिससे शरीर के दूसरे महत्वपूर्ण कार्य पूर्ण होते हैं।
गॉलब्लैडर लीवर के नीचे की तरफ होता है पित्त को उत्पादित करने का मुख्य कार्य लीवर का होता है जोकि गॉलब्लैडर में इकट्ठा होता है और जरूरत पड़ने पर गाल ब्लैडर इसको शरीर की पाचन प्रणाली को भेज देता है।
आयुर्वेद के अनुसार यह छोटा सा अंग शरीर में महत्वपूर्ण है कार्यप्रणाली को पूर्ण करता है।यह खाने में आई फैट को कोलेस्ट्रॉल पदार्थ को और वसा को पचाने के कार्य में भी सहयोग करता है।
गॉलब्लैडर के मुख्य काम :-
1. बाईल यानी के पित को जमा करना उसका भंडारण करना।
2. छोटी आंत यानी डुओेडिनम (Duodenum) तक पितरस को पहुंचाने का काम करना ।
3. वसा यानी की फैट को पचाने में मदद करना उसको संतुलित करना।
4. पिता यानी बाइल मुख्यतः जलीय और लवणीय अंश का बना होता है।
पित की पथरी (gallbladder stone):
गाल पथरी (Gallstones) का निर्माण जब पित्त की थैली (गॉल ब्लेडर) में केमिकल (कोलेस्ट्रॉल, कैल्शियम बिलीरूबीनेट, कैल्शियम कार्बोनेट) अपने संतुलन से बाहर हो जाते हैं, तो यह समस्या आ जाती है। पित्त की थैली में स्टोन अक्सर मोटे लोगों (खासकर महिलाओं) में एक आम समस्या है।
जो लंबे समय तक व्रत रखते हैं बिना किसी पूर्ण जानकारी के ऐसे व्यक्तियों को गाल पथरी के लक्षण कि समस्या रहती है ।
वर्तमान समय में पित की पथरी ( Gall Bladder Stone) कि समस्या बढ़ती जा रही है।
आधुनिक विज्ञान गाल ब्लैडर स्टोन ट्रीटमेंट में शरीर से आप्रेशन के द्वारा पिताश्य कों अलग कर देता है यानी बाहर निकाला देता है। पिताश्य जो की ईश्वर का दिया हुआ एक जरूरी अंग है जो भोजन को पचाने के कार्य में आता जिसको अनावश्यक मान कर doctoer पिताश्य निकालने की सर्जरी के माध्यम से इस अंघ कों हटा देते हैं।आप्रेशन के माध्यम से किये गए गाल ब्लैडर स्टोन ट्रीटमेंट का विपरीत प्रभाव शरीर पर बना रहता है| कुछ हस्पताल पित्त की पथरी का लेजर ऑपरेशन भी करते हैं |जिसमे भी रिस्क की सम्भावना रहती हैं और उम्र बढ़ने के साथ साथ इसके दुष्परिणाम शरीर पर आते रहते हैं।
पित्त की थैली की पथरी के लक्षण :-
1. बदहाजमा हो जाना खाना ठीक से ना पचना यह भी पीते की पथरी का एक लक्षण हो सकता है
2. खट्टी डकार आना है मुंह से खट्टा पानी आना छाती में जलन होते रहना |
3. VOMMITTING होना उल्टी होना खाना खाने के बाद उल्टी जैसे लक्षण महसूस होना|
4. एसिडिटी की समस्या बार-बार रहना ।
5. उदर (पेट) फूलना गैस वगैरह होना पेट में भारीपन बनी रहना
6. गाल ब्लैडर स्टोन लिवर के पास भी दर्द पैदा कर सकते हैं।
पित्त की थैली की पथरी होने के कारण
1. ज्यादा तला हुआ भोजन करना
2. रिफाइंड तेल खाना
3. चीज cheese आदि
4. बजार का मखन घी आदि खाना
5. जंक फूड फास्ट फूड खाना
6. गैस के बुलबुलों से भरे हुए कोल्ड ड्रिंक्स को पीना ज्यादा मीठा भोजन मावे के पदार्थ या और अन्य किन्हीं कारणों से लिया गया जायदा मीठा
7. चाय कॉफी शराब का अत्यधिक सेवन
8. ज्यादा अम्लीय पदार्थ
9. ज्यादा बैकरी के प्रोडक्ट जिनमें सैचुरेटेड ट्रांस फैट ज्यादा होता है
10. कोलेस्ट्रोल के रोगी
11. ज्यादा गर्भनिरोधक दवाओं का उपयोग
12. अनियमित दिनचर्या
13. रात को देर तक जागना
गाल ब्लैडर स्टोन से बचने के उपाय:
1. दिनचर्या को नियमित करना
2. गाल ब्लैडर स्टोन में क्या खाना चाहिए जैसे की मोटे और छिलके वाले अनाज जिनमें फाइबर की मात्रा हो उनको उपयोग ज्यादा करना|
3. शुद्ध घानी के तेलों का प्रयोग करना जैसे शुद्ध तिल का तेल सरसों का तेल शुद्ध देसी गाय का घी आदि|
4. ऑर्गेनिक गुड़ शक्कर का उपयोग
5. ताजे फलों का सेवन
6. सलाद का प्रयोग
7. फलों का रस
8. सिग्नल सब्जियों और फलों का उपयोग
9. समय से सोना
पित्त की थैली की पथरी का आयुर्वेदिक इलाज
आयुर्वेद के अनुसार पिताश्य शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है जिसका ऑपरेशन करवाने से शरीर की पाचन तंत्र संबंधित समस्याओं में दुष्परिणाम आते हैं इसलिए गाल ब्लैडर को ऑपरेट करवाने से पहले गाल ब्लैडर स्टोन का आयुर्वेदिक इलाज के लिए आप किसी आयुर्वेदिक डॉक्टर से संपर्क करें और गॉलब्लैडर स्टोन की ऑपरेशन से बचे हैं क्योंकि पिताश्य आपके शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है।
भारतीय आयुर्वेद हजारो साल पुराना ज्ञान हैं जिसमे पित्त की थैली की पथरी निकालने का अचूक उपाय से सम्बन्धित प्राचीन ज्ञान ग्रंथो में दिया हुआ है ,जिसको गुरु शिष्य परम्परा के अंतर्गत वैध लोग अपने शिष्यों कों सिखाते थे | गाल पथरी का ईलाज आयुर्वेद के अनुसार सुरक्षित होता हैं |
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